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रहस्यमाई चश्मा भाग - 24









जो सांस धड़कन के साथ भी निष्पप्राण क्या अंतर पड़ता है कोई मिट्ठी के मूरत को पत्थर मारे या अपमानित करे मैं अपने कोख में पल रहे बच्चे को अपना अभिमान मानती हूँ प्रेम के पुरस्कार का अभिननंदन करती हूं अब आप ही बताये बाबा हमे क्या करना चाहिए चौधरी साहब मैंने शुभा बिटिया के चेहरे पर आमावश्या के घनघोर आंधकार में जो तेज देखा वह अद्भुत और अविस्मरणीय तभी मैने शुभा बिटिया को वचन दिया कि अब से तुम भग्यवान कि पुत्री और मैं तेरा पिता तुम इस मंदिर प्रांगण में रहो छप्पर मैं बनवा देता हूँ मैंने ऐसा ही किया,,,,

 जब गांव वालों को पता चला कि गांव में शरण के लिए आई औरत को मैंने शरण दे रखी है तब गांव में पंचायत में हमे बुलाया और शुभा बिटिया को शरण देने पर आपत्ति उठाई मैंने अपनी बहन को बुलवाया और उससे साक्ष्य दिलाये कि शुभा उसकी ससुराल पक्ष कि रिश्ते में है और इसका कोई नही है सब लोग वार्षिक कुल पूजा हेतु नाव से नदी पार करते समय नाव डूब गई यह अभागिन बच गयी इसे मैंने ही भाईया के पास भेजा था भटक रही है तब जाकर गांव वाले शांत हुए,,

 श्यामाचरण झा का परिवार गांव में अच्छा खासा रसूख दार एव पढा लिखा है उनकी बात का सभी आदर करते है उन्होंने गांव वालों को समझाया कि पुजारी जी अगर किसी को भी अपने पास रखते है रंरक्षण देते है एक तो उसका गांव के वातावरण पर कोई कुप्रभाव नही पड़ना चाहिए दूसरे उसकी सम्पूर्ण जिम्मेदारी भी इन्ही कि होगी गांव वालों की कोई जिम्मेदारी नही होगी और गांव वाले भी कोई ऐसी हरकत नही कर सकते जिससे कि पुजारी जी कि प्रतिष्ठा को आंच आये।

तब जाकर शुभा बिटिया को कुछ शांति सुकून मिला जब दिन चैन से बीतने लगे तब शुभा मंदिर से धार्मिक पुस्तके ले जाती पढ़ती और धार्मिक विषयो पर चर्चा करती इसके अतिरिक्त वह कोई ऐसा कार्य नही करती जिससे कि किसी कि भी आपत्ति संम्भवः हो सके ऐसे ही एक दिन जब वह धार्मिक विषयो पर चर्चा कर रही थी मैंने उससे प्रश्न किया बेटी तुम धार्मिक विषयो में रुचि रखती हो और मर्मज्ञ भी हो तो फिर अपने कोख में पल रहे नए जीवन को क्यो नही समाप्त कर देती तब शुभा बिटिया जैसे साक्षात दुर्गा काली कि भयंकर रूप धारण कर लिया हो बोली आदरणीय आप मेरे पिता तुल्य है और सोने पर सुगंध यह है कि आप ईश्वर के सेवक भी है,,,,

 माँ जननी पृथ्वी की तरह है जिस प्रकार धरती पर कोई भी बीज पड़ गया तो उसे पौधा बृक्ष बनना ही है चाहे प्रकृति प्राणि किंतनी भी उंसे हानि पहुंचाए तो मैं अपने खोक को क्यो उजाडू इसमें उसका क्या दोष जिसने दुनियां देखी ही नही ना दोष जननी का है उसकी तो प्रकृति ही है बीच को समाज के लिए उपयोगी बृक्ष बनाना जो समाज को आवश्यकता के अनुरूप फल एव छाया दे सके मैं इसे जन्म के साथ नदी या तालाब में इसलिये नही प्रवाहित करना चाहती क्योकि मैं नही चाहती कि मेरी कोख जीवन भर अपमानित होती रहे और जन्म लेने वाले को जायज नाजायज कि व्यख्या के ताने से जीवन भर घुटना पड़े और भविष्य में माँ कि पवित्रता पर ही प्रश्न चिन्ह खड़ा हो जाए,,,

मैं इसे जन्म दूंगी और अच्छा परिवरिश दूंगी क्योकि मैं कुंती जैसी सती नारी कि तरह किसी असमंजस में ना तो स्वंय पड़ना चाहती ना ही अपनी संतान को कर्ण जैसी जीवनपर्यंत पीड़ा हेतु पल पल घुटने के लिए छोड़ देना इसलिये चाहती हूँ कि मैं सम्मानित रहूं मैं अपमान तिरस्कार के सामाजिक विष को स्वंय में समाहित कर लुंगी जिसका प्रभाव मेरे कोख में पल रहे जीवन पर नही पड़ेगा वह एक जिम्मेदार एव सर्वोत्तम सामाजिक चेटना होगा अपने समय का यदि मेरा प्रेम मेरी ही गलती है यह भी मान ले तब भी इसमें इसका क्या दोष?

 चौधरी साहब शुभा बिटिया ने मुझे अपने वैदिक धार्मिक साक्षो से निरुत्तर कर दिया जब सुयश के जन्म लेने का समय आया तब मैंने अपनी बहन गार्गी को बुलवाया पूरे छः माह प्रसव से लेकर वह थी उसने ही प्रसव काल एव उसके बाद कि जिम्मेदारियों का बाखूबी निर्वहन किया ।
और अपने कोख को पहचान दिलाने के लिए संघर्षरत है वह सुयश को युग संत कबीर दास कि तरह जीवन भर अंतर्मन में वात्सल्य कि पीड़ा को दबाने के लिए विवश किया ना ही महारथी कर्ण को जीवन भर अभिशापित एव व्यथित होने के लिए छोड़ दिया शुभा तो वर्तमान युग की वह सिंहनी सच्ची नारी शक्ति है जो सदैव बालिकाओं एव नारी जगत को प्रेरणा प्रदान करती दृढ़ता संकल्प उद्देश्य एव जीवन कि सार्थकता प्रदान करेगी,,,,

 चौधरी साहब धन्य है वह पुरुष जिसको शुभा ने वरण किया होगा निश्चित रूप से वह सौभाग्यशाली एव पराक्रमी होगा शुभा ने उसके जीवन के सभी कष्टों को ही अपने जीवन मे समेट लिया गौरव अभिमान है शुभा, शुभा युग सत्यार्थ है नारी अभिमान का सच है मैं सुबह ईश्वर कि वंदना के बाद उनको ही नमन करता हूँ सुयश मेहुल को अपने गांव कि विशिष्टता और खास बात बता रहा था।

 पुजारी तीरथ राज ने बताया कि जब कभी सुयश को कुछ हो जाता शुभा बिटिया निराश हताश सिर्फ मंदिर में आकर बैठ जाती मैं सुयश के लिये इलाज आदि कि सुलभ संभव व्यवस्था करता बचपन मे एक बार सुयश को निमोनिया हो गया चिकित्सको ने सभी प्रायास के बाद जबाब दे दिया तब शुभा बिटिया लगभग निर्जीव सुयश को पूरे तीन दिनों तक भोले नाथ के समक्ष बैठी रही मैं सुयश को कड़ा आदि अपनी जानकारी के अनुसार किसी तरह से बूंद बूंद करके पिलाता पूरे तीन दिन बाद सुयश को कुछ राहत मिलनी शुरू हुई और धीरे धीरे वह स्वस्थ होने लगा,,,,,

जाने कितने दिन रात शुभा बिटिया ने सुयश के लिये आहार निद्रा का त्याग किया केवल इसी विश्वास में कि एक न एक दिन उसे समाज दुनियां में सुयश उंसे सम्मान दिलाएगा वह यही कहती पण्डित चाचा जीवन मे चैन सम्मान से तो शायद जी न सकू कम से कम अर्थी पर तो सम्मान के साथ चैन कि निद्रा में दुनियां से विदा होऊ डोली तो उठी नही कम से कम अर्थी तो उठे मंगलम चौधरी सुन तो रहे थे,,,,

पण्डित तीरथ राज कि बाते लेकिन उनका मन आत्मग्लानि पश्चाताप से ग्रसित हो चुका था । मंगलम चौधरी के मन मे एक ही प्रश्न ने उन्हें अंतर्मन से झकझोर कर रख दिया था कि जिस मंगलम चौधरी के कारण हज़ारों घरों में चूल्हा जलता है और खुशी के पल परिवार है और जिस मंगलम चौधरी ने एक लावारिस नाजायज ना जाने कौन है माता पिता कि संतान सितान्त को कचरे से उठाकर अच्छी परिवरिश और नाम दिया उसी मंगलम चौधरी का अपना खून दर बदर समय समाज भाग्य भगवान की सजा कि ठोकर खा रहा है और पत्नी जिससे उसने जन्म जन्म का साथ निभाने का वचन दे रखा था इसी जन्म में पता नही किस हाल में कहां भटक रही है बार बार मंगलम चौधरी कि आंखे नम होकर भर जाती किसी तरह से वह अपने आपको संतुलित करने की कोशिश करते ।

पण्डित तीरथ राज ने कहा बहुत कष्ट सहे है शुभा बिटिया ने मैं तो भोले नाथ से सिर्फ यही प्रार्थना नित्य करता हूँ कि शुभा बिटिया कि तपस्या सार्थक हो और उसे समाज मे स्वीकारोक्ति एव सम्मान मिले।


 वन प्रदेश शिवालय के मुखिया पण्डित सर्वानद जी ने आशा नही छोड़ी थी जब भी आदिवासी समाज से कोई आता शुभा के इलाज के लिए बात चीत करते और आदिवासी और अपनी जानकारी के अनुसार नुस्खे आजमाते कभी कोई आशा कि किरण दिख जाती कुछ समय पल प्रहर दिन बाद शुभा जस कि तस हो जाती दीर्घकालिक प्रभवा किसी नुस्खा नही पड़ता बावजूद इसके ना तो आदिवासी समाज ने हार मानी थी ना ही संत समाज ने दोनों के सयुक्त प्रायास चलते रहते ।

एक दिन आदिवासी समाज के मुखिया चन्दर कोई जंगली जड़ी बूटी लेकर आये और सर्वानद जी से बोले महाराज यह जड़ी बूटी आप उस औरत को दे इससे निद्रा बहुत आती है और हमारे समाज के पुरुखों का कहना है जिस मानुष को नींद नही आदि वह विक्षिप्त पागल हो जाता है उसकी स्थिति ऐसी ही है सर्वानद जी ने बड़ी मुश्किल से चन्दर एव अन्य संतो के सहयोग से दिया करीब चार पांच प्रहर बाद शुभा को बहुत गहरी नीड आयी और वह निद्रा के आगोश में चली गयी!

 आदिवासी समाज के मुखिया चन्दर ने कहा महाराज चमत्कार तो नही लेकिन कुछ अच्छा अवश्य होने वाला है और सर्वानद जी से अनुमति लेकर चले गए संत समाज को भी सुकून मिला कि जब तक शुभा सोयेगी तब तक तो संत समाज कुछ निश्चिंत रहेगा नही तो एक एक करके संत समाज के हर संत को शुभा कि निगरानी करनी पड़ती भय यह था कि यह कही इधर उधर भटक गयी और किसी खूंखार जंगली जानवर कि दृष्टि पड़ी तो ना तो यह स्वंय को बचा पाएगी और ना ही खूंखार जंगली जानवर इसे छोड़ेगा,,,,


जंगल का एक कठोर सिंद्धान्त है कि यहां सिर्फ शक्तिशाली एव पराक्रमी ही रह सकता है शुभा दोनों नही है ऐसी स्थिति में संत समाज पर अपयश सदा के लिये लग जायेगा और आदिवासी समाज को दिए वचन को ना निभा पाने का जिम्म्मेदार यही कारण था कि संत समाज किसी तरह कि लापरवाही नही करता । शुभा अचेतन कि गहरी निद्रा में थी।


जारी है



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6 Comments

kashish

09-Sep-2023 08:03 AM

V nice

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RISHITA

02-Sep-2023 09:59 AM

Amazing

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madhura

01-Sep-2023 10:55 AM

Nice

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